नीमच। पुश्तैनी गांव छोड़कर परिवार के साथ नीमच आ गए। यहां एक छोटी सी चाय की गुमटी लगाई और इसी पर मेहनत कर उन्होंने बच्चों का भविष्य संवार द...
नीमच। पुश्तैनी गांव छोड़कर परिवार के साथ नीमच आ गए। यहां एक छोटी सी चाय की गुमटी लगाई और इसी पर मेहनत कर उन्होंने बच्चों का भविष्य संवार दिया। आज बच्चों की सफलता के कारण उन्हें देश और प्रदेशभर में मान सम्मान मिलता है। इसी मान सम्मान को वे अपने परिश्रम का सही मोल बताते हैं। उनकी एक बेटी फाइटर पायलट बन चुकी है। जबकि दूसरी बेटी वॉलीबॉल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी होकर पढ़ाई कर रही है। बेटा इलेक्ट्रीकल इंजीनियर के रुप में स्थापित हो चुका है। जी हां हम बात कर रहे हैं नामदेव टी स्थल के संचालक सुरेश गंगवाल (नामदेव) की।
शहर के नीमच सिटी रोड पर रोडवेज और प्राइवेट बस स्टैंड के समीप सुरेश गंगवाल की टी स्टॉल है। शहर और समाज में उनकी ख्याति एक ऐसे पिता के रुप में हैं, जिन्होंने दिन-रात परिश्रम कर बच्चों को इस लायक बना दिया कि वे अपना और परिवार का नाम देशभर में रोशन कर सके । सुरेश गंगवाल बताते हैं कि वे मूलरुप से जावद के समीप तारापुर-उम्मेदपुरा गांव के रहने वाले हैं।
दादा के समय में गांव में हस्तशिल्प कला से जुड़े थे। कपड़ों की रंगाई का काम करते थे। लेकि न इसके बाद सन् 1990 में पिता के सरीमल गंगवाल व भाइयों के साथ रोजगार की तलाश में नीमच आ गए। शुरुआत में सन् 1991 में नीमच सिटी में नृसिंह मंदिर के पास कि राये के भवन में चाय की दुकान की शुरुआत की। इसके 4 साल बाद सन् 1995 में नीमच सिटी रोड पर रोड बस स्टैंड के समीप नामदेव टी स्टॉल की शुरुआत की। तब से लेकर अब तक टी स्टॉल संचालित कर रहे हैं।
इसी दुकान से होने वाली कमाई से परिवार का भरण पोषण कि या। परिश्रम कर रुपए कमाई और बच्चों को संस्कारित करने के साथ बेहतर शिक्षा दिलाई। इसी परिश्रम की बदौलत बेटा चंद्रेश (26) इंदौर में इलेक्ट्रीकल इंजीनियर और बेटी आंचल गंगवाल (22) मैसूर में फाइटर पायलेट का प्रशिक्षण ले रही है। जबकि छोटी बेटी दिव्यांनी (19) पढ़ाई करने के साथ वालीबॉल खिलाड़ी है। वे राष्ट्रीय स्तर तक खेल में नाम कमा चुकी है।
बच्चों के भविष्य को संवारने में सुरेश गंगवाल के साथ पत्नी बबीता ने भी हर विषम परिस्थितियों का सामना कि या और लक्ष्य व सपना पूरा करने में मददगार बनी। सुरेश गंगवाल बच्चों की सफलता से बेहद खुश और उत्साहित है। वे कहते हैं कि बच्चों की सफलता से उनके सपनों को पंख लग गए।
11 वीं तक शिक्षित है सुरेश
सुरेश गंगवाल 11 वीं तक शिक्षित है। उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा पिता के सरीमल और मां गीता बाई के सान्निध्य में तारापुर-उम्मेदपुरा में पूरी की। इसके बाद नौवीं से ग्यारहवीं तक की शिक्षा जावद में हासिल की। इस दौरान कपड़ों पर छपाई की हस्तशिल्प कला के काम में भी पारंगत हो चुके थे। उनके अलावा परिवार में तीन भाई और है। सुरेश की शादी सन् 1986 में मंदसौर में हुई।
शुरुआत में संयुक्त, अब एकल परिवार
सन् 1991 में सुरेश गंगवाल और परिजन संयुक्त परिवार में रहते थे। लेकि न समय के साथ परिवार बढ़ता गया और भाई अलग होते गए। बड़े परिवार के लिए कि राए का बड़ा मकान मिलने में दिक्कत आई। इस कारण वर्तमान में सुरेश गंगवाल और उनके तीन भाई नीमच शहर में विभिन्न् स्थानों पर निवास करते हैं। लेकि न माता-पिता के संस्कार के कारण भाइयों में अब भी बेहतर तालमेल है।
शहर के नीमच सिटी रोड पर रोडवेज और प्राइवेट बस स्टैंड के समीप सुरेश गंगवाल की टी स्टॉल है। शहर और समाज में उनकी ख्याति एक ऐसे पिता के रुप में हैं, जिन्होंने दिन-रात परिश्रम कर बच्चों को इस लायक बना दिया कि वे अपना और परिवार का नाम देशभर में रोशन कर सके । सुरेश गंगवाल बताते हैं कि वे मूलरुप से जावद के समीप तारापुर-उम्मेदपुरा गांव के रहने वाले हैं।
दादा के समय में गांव में हस्तशिल्प कला से जुड़े थे। कपड़ों की रंगाई का काम करते थे। लेकि न इसके बाद सन् 1990 में पिता के सरीमल गंगवाल व भाइयों के साथ रोजगार की तलाश में नीमच आ गए। शुरुआत में सन् 1991 में नीमच सिटी में नृसिंह मंदिर के पास कि राये के भवन में चाय की दुकान की शुरुआत की। इसके 4 साल बाद सन् 1995 में नीमच सिटी रोड पर रोड बस स्टैंड के समीप नामदेव टी स्टॉल की शुरुआत की। तब से लेकर अब तक टी स्टॉल संचालित कर रहे हैं।
इसी दुकान से होने वाली कमाई से परिवार का भरण पोषण कि या। परिश्रम कर रुपए कमाई और बच्चों को संस्कारित करने के साथ बेहतर शिक्षा दिलाई। इसी परिश्रम की बदौलत बेटा चंद्रेश (26) इंदौर में इलेक्ट्रीकल इंजीनियर और बेटी आंचल गंगवाल (22) मैसूर में फाइटर पायलेट का प्रशिक्षण ले रही है। जबकि छोटी बेटी दिव्यांनी (19) पढ़ाई करने के साथ वालीबॉल खिलाड़ी है। वे राष्ट्रीय स्तर तक खेल में नाम कमा चुकी है।
बच्चों के भविष्य को संवारने में सुरेश गंगवाल के साथ पत्नी बबीता ने भी हर विषम परिस्थितियों का सामना कि या और लक्ष्य व सपना पूरा करने में मददगार बनी। सुरेश गंगवाल बच्चों की सफलता से बेहद खुश और उत्साहित है। वे कहते हैं कि बच्चों की सफलता से उनके सपनों को पंख लग गए।
11 वीं तक शिक्षित है सुरेश
सुरेश गंगवाल 11 वीं तक शिक्षित है। उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा पिता के सरीमल और मां गीता बाई के सान्निध्य में तारापुर-उम्मेदपुरा में पूरी की। इसके बाद नौवीं से ग्यारहवीं तक की शिक्षा जावद में हासिल की। इस दौरान कपड़ों पर छपाई की हस्तशिल्प कला के काम में भी पारंगत हो चुके थे। उनके अलावा परिवार में तीन भाई और है। सुरेश की शादी सन् 1986 में मंदसौर में हुई।
शुरुआत में संयुक्त, अब एकल परिवार
सन् 1991 में सुरेश गंगवाल और परिजन संयुक्त परिवार में रहते थे। लेकि न समय के साथ परिवार बढ़ता गया और भाई अलग होते गए। बड़े परिवार के लिए कि राए का बड़ा मकान मिलने में दिक्कत आई। इस कारण वर्तमान में सुरेश गंगवाल और उनके तीन भाई नीमच शहर में विभिन्न् स्थानों पर निवास करते हैं। लेकि न माता-पिता के संस्कार के कारण भाइयों में अब भी बेहतर तालमेल है।
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