इंसान बन इंसानियत निभाऊं मैं, सबसे अच्छा नास्तिक ही बन जाऊं मैं। एक भूखे को भूखा रखकर, मूर्तिपूजा में इतना दुग्ध बहाऊँ मैं। इससे...
सबसे अच्छा नास्तिक ही बन जाऊं मैं।
एक भूखे को भूखा रखकर,
मूर्तिपूजा में इतना दुग्ध बहाऊँ मैं।
इससे अच्छा नास्तिक ही बन जाऊं मैं।
इंसान...........
एक निर्धन को सर्द रात में ठिठुरता छोड़,
बेवजह पीर पर चादर चढ़ाऊँ मैं।
इससे अच्छा तो नास्तिक ही बन जाऊं मैं।
इंसान.................
एक घर को अंधकार में डूबा देखकर,
जीजस के सामने कैंडल जलाऊँ मैं।
इससे अच्छा तो नास्तिक ही बन जाऊं मैं।
इंसान...............
- श्रद्धा पाठक 'प्रज्ञा'
सतना, मध्यप्रदेश
Bahut khoob.. 👌
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