*सुंदर संतृप्ति...* सुख में अब थोड़ी वृद्धि है, मन की सुंदर संतृप्ति है, प्रेम की प्रियतम के ये शक्ति है संबद्ध है प्रेम का स...
*सुंदर संतृप्ति...*
सुख में अब थोड़ी वृद्धि है,
मन की सुंदर संतृप्ति है,
प्रेम की प्रियतम के ये शक्ति है
संबद्ध है प्रेम का सागर
ईश्वरीय भाषा की अभिव्यक्ति है...
अभिज्ञ थे अनभिज्ञ हुए,
अशक्त से सशक्त हुए,
अतिरिक्त, अलक्ष्य, अयोग्य से अब योग्य हुए...
कुछ लोग मिले जो साथ चले
मन करता मनमीत की भक्ति है,
सुख में अब थोड़ी वृद्धि है,
मन की सुंदर संतृप्ति है ।
भय, बाधित थे अबाध्य बने
साधन थे अब साध्य बने,
अपूर्ण, विक्षिप्त थे
नैतिक, सात्विक अब पूर्ण बने,
प्रेम की मनमोहक बेला
हृदयाघात की मरहम पट्टी है
सुख में अब थोड़ी वृद्धि है,
मन की सुंदर संतृप्ति है ।
लेखिका-
कु. मेघा शर्मा
आर्मी शिक्षिका
झाँसी, (उ. प्र.)
निवासी - शिवपुरी (म. प्र.)
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