आयुर्वेद का सिद्धांत कहता है कि हर मौसम के अनुरूप आहार-विहार होना चाहिए। ऋतु संधी के दौरान इस बात पर और भी गंभीरता से अमल करना चाहिए। आयुर्व...
आयुर्वेद का सिद्धांत कहता है कि हर मौसम के अनुरूप आहार-विहार होना चाहिए। ऋतु संधी के दौरान इस बात पर और भी गंभीरता से अमल करना चाहिए। आयुर्वेदचार्य डा. अखिलेश भार्गव के अनुसार चेत्र माह शुरू हो गया है और इसके साथ ही खानपान की आदत में बदलाव लाना भी जरूरी है। धीरे-धीरे गर्मी के तेवर तीखे होेते जा रहे हैं।
सूर्य का तापमान बढ़ने से शरीर में पानी की कमी हो सकती है। जब शरीर में पानी की कमी होती है तो कफ-पित्त से संबंधित समस्या भी बढ़ जाती है, इसलिए हमें अपनी आदत में यह बात शामिल करना होगा कि जब भी घर से बाहर निकलें करीब 300 से 400 एमएल पानी पीकर जाएं। गर्मी पसीना ज्यादा बहने से शरीर में सोडियम और पोटेशियम की ह्रास भी अधिक होता है। इसकी भरपाई के लिए नारियल पानी सबसे बेहतर होता है। नारियल पानी से शरीर में पानी की कमी भी नहीं होती। इस दौरान साधारण नमक के स्थान पर सेंधा नमक का उपयोग ज्यादा लाभकारी होता है क्योंकि उसमें अधिक पोषकतत्व होते हैं।
जिन्हें निम्न रक्तचाप की समस्या हो नमक-शकर युक्त पानी पिएं। इससे निम्न रक्तचाप की समस्या काफी हद तक कम होगी। गर्मी में शरीर में पित्त बढ़ता है। इस स्थिति में चंदन, आंवला, गुलाब, खसखस, बेल का शरबत या उसकी औषधी लेना लाभदायक होता है। इस मौसम में त्वचा रोग होने की आशंका ज्यादा होती है। इसलिए चैत्र और वेशाख माह में नीम की पत्ती का सेवन करना चाहिए। नीम का रस तिख्त होता है जो कफ और पित्त का शमन करता है। इसके रस से रक्त भी साफ होता है। नीम के सेवन से खून की खराबी, जलन भी समाप्त होती है। नीम का सेवन रस, चूर्ण, गोली या पत्ती को पीसरकर भी किया जा सकता है।
यदि इसका चूर्ण खाएं तो दो से तीन ग्राम चूर्ण प्रतिदिन सुबह नाश्ते के बाद खा सकते हैं। इस मौसम में दूषित जल से होने वाली बीमारी भी बहुत होती है इसलिए पानी उबालकर उसे ठंडा करके ही पिएं। नियमित भोजन लघु और सुपाच्य होना चाहिए। दिन में अल्प मात्रा में सोएं इससे कफ नहीं बढ़ेगा।
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